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लोहड़ी पर्व को लेकर सिख समुदाय में उत्साह, 14 जनवरी को मनाया जाएगा यह पर्व

Soyeta JhaBy Soyeta JhaJanuary 12, 2023
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लोहड़ी पर्व को लेकर सिख समुदाय में उत्साह, 14 जनवरी को मनाया जाएगा यह पर्व
-क्यों खास होता है यह नए वर्ष का पर्व
अशोक झा, सिलीगुड़ी: उत्सह, उमंग का त्योहार है लोहडी। समय के साथ साथ ये त्योहार पंजाब की गलियाें से निकल कर आज ग्लोबल हो चुका है। हर वर्ग के लोग लोहड़ी के उत्सव में शामिल होते हैं और नयी फसलों की बधाइयां देते हैं।
मकर संक्रांति के 1 दिन पहले मनाए जाने वाला लोहड़ी पर्व को लेकर सिख समुदाय के लोगों में सभी उत्साह है। कोविड-19 के कारण पिछले 2 वर्षों में इसे परंपरागत तरीके से खुलकर नहीं मनाया जा सका था। इस वर्ष इस पर्व को बड़े धूमधाम के साथ मनाने की तैयारी है । मान्यता है  कि इस रोज अग्नि जलाकर पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं लोहड़ी के शुभ मुहूर्त और पूजा विधी के बारे में…
कैसे मनाई जाती है लोहड़ी :
लोहड़ी पावन पर्व पर नई फसल को काटा जाता है। इसे मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाई जाती है। ये यू तो पूरे भारत में प्रचलित है। लेकिन, पंजाब और हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सो में इसका विशेष महत्व हैं। इस पर्व में लकड़ियों या उपलों से खुली जगह पर आग जलाई जाती है। फिर कटी हुई फसल का पहला भोग अग्नि को लगाया जाता है। इसके बाद सभी लोग अग्नी की परिक्रमा करते हैं और गाना गाकर एक दूसरे को बधाई देते हैं।

लोहड़ी शुभ मुहूर्त 
मकर संक्रांति मतलब 14 जनवरी 2023 से ठीक एक दिन पहले 13 जनवरी को लोहड़ी मनाई जाती है। लेकिन, इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाई जाएगी। इस कारण लोहड़ी भी एक 13 की जगह 14 जनवरी को मनाई जाएगी। 14 जनवरी को लोहड़ी की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 8 बजकर 57 मिनट पर है। इसके बाद लोग लोहरी जलाकर अन्य कार्यक्रम कर सकते हैं।

क्या-क्या चढ़ाया जाता है?
धार्मिक दृष्टि से लोहड़ी का बड़ा महत्व है। इस दिन शुभ मुहूर्त और सही पूजा विधी से जीवन में सुख-समृद्धि व सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। लोहड़ी के दिन आग में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाई जाती हैं। जिन लोगों के घर में बेटे की शादी के बाद नई बहु आई होते हैं या जहां बच्चों को जन्म हुआ होता है। उन घरों में लोहड़ी को काफी धूमधाम से मनाया जाता है। पहले के समय में ये त्योहार हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली आदि इलाकों में मनाया जाता था, लेकिन अब इसे देश के अन्य हिस्सों में भी लोग मनाते हैं। ऐसे में नई फसलों को पूजा जाता है और अग्नि जलाकर गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, पॉपकॉर्न आदि अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार व आसपास के सभी लोग मिलकर अग्नि की परिक्रमा करते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं, गिद्दा भंगड़ा करते हैं और इस दिन का जश्न मनाते हैं। लोहड़ी के पर्व की परंपरा को समझने के लिए इसके अर्थ को समझना होगा। ये शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है। इसमें ‘ल’ का अर्थ है लकड़ी ‘ओह’ का अर्थ है गोहा यानी सूखे उपले और ‘ड़ी’ का मतलब यहां रेवड़ी से है। इसलिए लोहड़ी पर उपलों और लकड़ी की मदद से अग्नि जलायी जाती है। आइए जानते हैं लोहड़ी पर अग्नि क्यों मनाई जाती है और इसका धार्मिक और सामाजिक महत्व।

लोहड़ी पर्व में अग्नि का महत्व 

लोहड़ी का पर्व सूर्यदेव और अग्नि को समर्पित है। इस पर्व में लोग नई फसलों को लोग अग्निदेव को समर्पित करते हैं। शास्त्रों के अनुसार अग्नि के जरिए ही सभी देवी देवता भोग ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि लोहड़ी के पर्व के माध्यम से नई फसल का भोग सभी देवताओं तक पहुंच जाता है। कहते हैं कि अग्निदेव और सूर्य को फसल समर्पित करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है और उनसे आने वाले समय में भी अच्छी फसल, सुख समृद्धि की कामना की जाती है।
लोहड़ी का धार्मिक महत्व
लोहड़ी का पर्व वैसे तो प्रकृति पूजा के लिए समर्पित है। पंजाब में इस पर्व का धार्मिक महत्व है। लोहड़ी की शाम लोहड़ी जलाकर अग्नि की सात बार परिक्रमा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान जिसके भी घर पर खुशियों का मौका आया, चाहे विवाह हो या संतान के जन्म के रूप में, लोहड़ी उसके घर जलाई जाएगी और लोग वहीं एकत्र होंगे। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते है।

लोहड़ी का सामाजिक महत्व 
लोहड़ी पर्व का न सिर्फ धार्मिक महत्व है बल्कि सामाजिक रूप से भी इस पर्व को लेकर खास उत्साह देखते बनता है। इस दिन लोहड़ी के गीत गाए जाते हैं। दुल्ला भट्टी के गीत गाती हैं। कहते हैं महराजा अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी एक लुटेरा था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को गुलाम के तौर पर बेचे जाने का विरोधी था। उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था। गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। इस दिन परम्परागत वेशभूषा के साथ पुरुष और स्त्रियां ढोल की थाप पर लोकप्रिय भांगड़ा और गिद्दा करती हैं। पंजाब और उत्तर भारत में नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व है। नवविवाहित जोड़ा लोहड़ी की अग्नि की सात बार परिक्रमा करके फूले, रेवड़ी और मूंगफली लोहड़ी की अग्नि में समर्पित करते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं। रिपोर्ट अशोक झा

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