मुस्लिम युवाओं को अनिश्चित भविष्य छोड़ सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने का अच्छा अवसर
-भारतीय मुस्लिम युवक अपने भविष्य को लेकर गंभीर प्रतीत नहीं होते जो आंकड़े बताते है
अशोक झा, सिलीगुड़ी: एक देश का भविष्य वह सफलता के कई कारण होते हैं इन सभी कारणों में मानव संसाधन सबसे महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं एक देश का युवा वर्ग उसके लिए एक बड़ा फायदेमंद है जनगणना 2011 के अनुसार भारत की 58 पॉइंट 3 प्रतिशत जनसंख्या 29 साल या उससे कम आयु वर्ग की है 32 वर्ष से अधिक की आबादी का अनुपात 41 पॉइंट 4 प्रतिशत है जनगणना 2011 के अनुसार हमारे देश में पिछले दशक में उल्लेखनीय प्रगति की है।शिक्षा के क्षेत्र में वह हमारी साक्षरता प्रतिशत 73 पर पहुंच गई है यदि जी पूरा विश्व अपने आप को बेहतर करने व अपनी योग्यता को साबित करने में लगा है परंतु भारतीय मुस्लिम युवक अपने भविष्य को लेकर गंभीर प्रतीत नहीं होते प्रतिष्ठित परीक्षाओं जैसे अखिल भारतीय सिविल सेवा विभिन्न राज्यों की सिविल सेवाओं की परीक्षाओं में मुस्लिमों की जनसंख्या के अनुपात में उनका इन प्रतियोगी परीक्षाओं को तीन करने का प्रतिशत काफी कम है।
वर्ष 2019 में अखिल भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में सफल मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रतिशत 5.3 था जो वर्ष 2020 की परीक्षा में घटकर 4.7 वर्ष 2021 की परीक्षा में 3% रह गया जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिमों की आबादी का प्रतिशत देश में हो 10 पॉइंट 2 है राजेंद्र नगर करोल बाग मुखर्जी नगर गांधी नगर दिल्ली के इलाज के उम्मीदवारों को पसंद है जो सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी करना चाहते हैं विषय है। गैर मुस्लिम उम्मीदवार करने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं वहीं कुछ अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए मेहनत करते नजर आएंगे यदि पी दिल्ली के दूसरे इलाकों में बहुत से मुस्लिम युवक अपना समय बेकार की चर्चाओं में बर्बाद करते नजर आते हैं इन क्षेत्रों में रात्रि की दुनिया थी बहुत ही आकर्षित करने वाली है परंतु इन सब चीजों के पीछे जय सत्य नजर आता है कि बहुत से मुस्लिम युवक युक्तियां का भविष्य अनुचित है।यही देश के कई शहरों में भी देखा जा सकता है या मुस्लिमों की एक अच्छी खासी आबादी है यदि भारत सरकार में भी खुश ग्रह मुस्लिम छात्र छात्राओं को वजीफा व अन्य सताए प्रदान कर तालीम के आगे बढ़ाने का कार्य किया है। भारत सरकार इनको मौलाना आजाद राष्ट्रीय स्कॉलरशिप मुफ्त कोचिंग प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे जामिया मिलिया इस्लामिया में देने की व्यवस्था किया परंतु इन सब के बाद ही मुस्लिमों का विभिन्न क्षेत्रों जैसे न्यायपालिका राज्य पुलिस व अखिल भारतीय सिविल सेवा में जग्गी काफी कम है यदि भारतीय मुस्लिम यह आरोप लगाते हैं कि सरकारें उनके उत्थान के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं परंतु सच्चाई यही है।जबकि भारत सरकार ने उज्ज्वल अल्पसंख्यक छात्रों को प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति, जामिया मिलिया इस्लामिया आदि जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में मुफ्त सी.ए. के रूप में सहायता प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, मुस्लिम युवा अक्सर लापरवाह पाए जाते हैं, अपने भविष्य के बारे में उदासीन और अनभिज्ञ, अपने माता-पिता/अभिभावकों के अभावग्रस्त रवैये से और भी जटिल हो जाता है। न्यायपालिका, राज्य पुलिस बल और सीपीएएफ के क्षेत्र में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की कमी के बारे में प्रश्न पूछे जाने की आवश्यकता है, विशेष रूप से अधिकारी वर्ग आदि में सरकार द्वारा स्तरीय खेल मैदान प्रदान करने के बावजूद। सरकार की निष्क्रियता पर रोना चिल्लाना तब तक ठोस परिणाम नहीं देगा जब तक कि मुस्लिम युवा स्वयं व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन जाते। यह केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करके और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से प्राप्त करने के लिए उस शिक्षा का उपयोग करके प्राप्त किया जा सकता है। मुसलमान हर साल जकात और सदका के रूप में लाखों रुपये देते हैं। अच्छी तरह से मुसलमानों द्वारा अपने बच्चों के विवाह के दौरान करोड़ों खर्च किए जाते हैं, जो किसी भी तरह से इस्लाम के अनुरूप नहीं है। यदि इस राशि का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाए तो गरीब और दलित मुसलमान भी अपना भविष्य संवार सकते हैं। ये दो उदाहरण निर्णायक रूप से साबित करते हैं कि भारत का मुस्लिम समुदाय अन्य समुदायों के व्यापारियों से व्यावसायिक सबक सीख सकता है। अन्य समुदायों की तुलना में आपको भारत में बहुत कम मुस्लिम व्यवसायी मिलेंगे। रिपोर्ट अशोक झा