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Home»India»भूत-प्रेत संग बाबा के गणों ने हरिश्चंद्र घाट पर चिता भस्म की होली खेली
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भूत-प्रेत संग बाबा के गणों ने हरिश्चंद्र घाट पर चिता भस्म की होली खेली

Uma ShaBy Uma ShaMarch 5, 2023
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भूत-प्रेत संग बाबा के गणों ने हरिश्चंद्र घाट पर चिता भस्म की होली खेली
अशोक झा, सिलीगुड़ी: रंगभरी एकादशी पर जहां काशी विश्वनाथ धाम में बाबा और मां गौरा के साथ भक्त होली खेल रहे थे तो वहीं हरिश्चंद्र घाट पर मसान की होली में बाबा के गण और उनके भक्तों का हुजूम उमड़ा था। भूत-प्रेत संग बाबा के गणों ने हरिश्चंद्र घाट पर चिता भस्म की होली खेली। देश-विदेश से इस होली को देखने घाट पर लोग पहुंचे थे। अबीर-गुलाल और भस्म उड़ाते हुए होली गीतों की धुन पर सभी के पांव थिरकते रहे।काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति की ओर से हरिश्चंद्र घाट पर संस्था के अध्यक्ष पवन कुमार चौधरी ने सुबह बाबा मशाननाथ का रुद्राभिषेक व पूजन किया। दोपहर में रवींद्रपुरी स्थित बाबा कीनाराम मंदिर में पूजन के बाद भव्य शोभायात्रा निकाली गई। भूत-प्रेत, देवों की झांकी देखते बन रही थी। भूत-प्रेत के स्वरूप करतब दिखाते चल रहे थे। कहीं, शहनाई की धुन तो कहीं बैंडबाजे व ढोल-नगाड़े पर युवा थिरक रहे थे। डीजे पर होली गीत बज रहे थे। किन्नरों का दल भी लोकनृत्य कर रहा था। शोभायात्रा भेलूपुर, सोनारपुरा होते हुए करीब दो घंटे में हरिश्चंद्र घाट पहुंची, जहां बाबा की आरती उतारी गई। वहीं, घाट का कोना-कोना होलियाना माहौल में डूबा था। हर ओर खासकर युवाओं की टोलियां झूमती रहीं। भूत-प्रेत, महादेव और काली आदि देवों के स्वरूपों संग लोग भी चिता भस्म से होली खेलते रहे। हिंदुओं का प्रसिद्ध त्योहार होली। भारत और नेपाल के लोगों के लिए महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली बसंत ऋतु में मनाए जाने वाला एक पवित्र पर्व है। भारत देश को अनेकता में एकता के लिए जाना जाता है। यहा कोई भी पर्व अलग-अलग जगहों पर विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। होली का भी पर्व ऐसा ही है जो हर राज्य और शहर में अजब-गजब तरीकों से मनाया जाता है। हम बात करने करने वाले हैं, विश्व प्रसिद्ध बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस के काशी नगरी की। जहां होली खेलने का एक अलग ही तरीखा है।
काशी में भोले के भक्त रंग-गुलाल या फूलों की होली नहीं खेलते बल्कि यहां श्मशान घाट की चिताओं से होली खेलते हैं। इस साल काशी में श्मशान घाट पर अनूठी प्रकार के होली रंगभरी एकादशी के ठीक एक दिन खेली जाती है, जो इस बार 4 मार्च 2023 को है। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर सुबह 11:30 बजे चिताओं के साथ भोले के भक्त होली खेलेंगे। वैसे बनारस में होली की शुरुआत फाल्गुन पूर्णिमा से पहले रंगभरी एकादशी से मनाई जाती है।

लोगों के मन में यह सवाल जरूर घूम रहा होगा कि आखिरकार देवों के देव महादेव की नगरी काशी में क्यों जलती चिताओं के बीच होली खेली जाती है। क्यों महादेव के भक्त इस प्रकार से होली खेलते हैं, क्या है इसका महत्व और क्या है ऐसी होली खेलने के पीछे का धार्मिक महत्व… तो आइए काशी के अनोखे तरह से मनाई जाने वाली होली के बारे में विस्तार से जानते हैं।

क्यों खेली जाती है काशी में श्मशान की होली

पौराणिक मान्यता के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन जब देवों के देव महादेव माता पार्वती का गौना कराकर वापस लौटे थे, तो उनकी बारात में शामिल सारे भक्त और गण उनके साथ फूलों और गुलाल आदि के साथ होली खेली थी। लेकिन इसी रंगोत्सव से श्मशान घाट किनारे बसने वाले भूत-प्रेत और अघोरी होली खेलने से वंचित रह गए थे। जब यह बात महादेव को पता चलती थी तो वह तुरंत ही अगले दिन पूरे दल-बल के साथ श्मशान घाट पर पहुंचते थे और भगवान शिव जलती चिताओं के बीच भूत-प्रेत के साथ चिता की राख से होली खेली थी। मान्यता है कि तब से लेकर आज तक मसाने की होली की परंपरा चली आ रही है। इस दिन सारे भक्त श्मशान घाट पर आकर धधकती चिताओं के बीच भगवान शिव की भक्ति में डूबकर खूब झूमते और नाचते हैं। इस दिन सारे भक्त ठंडी पढ़ी चिताओं की भस्म से होली खेलते हुए नजर आते हैं।

क्या है श्मशान की होली का धार्मिक महत्व

मान्यताओं के अनुसार, काशी विश्वनाथ की नगरी मोक्ष प्राप्ति के लिए अति उत्तम स्थान माना गया है। मोक्ष की नगरी में मनाई जाने वाली काशी में श्मशान घाट पर होली खेलने का बहुत ही ज्यादा धार्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चिताओं के साथ होली खेलने पर इंसान का जीवन से मृत्यु का भय दूर हो जाता है। मान्यता यह भी है कि मसाने की होली खेलने वाले भक्त पर महादेव की असीम कृपा बरसती है। श्मशान घाट की होली खेलने से पूरे साल भूत-प्रेत और तमाम बाधाओं से भी मुक्ति होती है। रिपोर्ट अशोक झा

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