देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 138वीं जयंती आज
-राजेंद्र बाबू विद्वता, सादगी और ईमानदारी के मिशाल थे
अशोक झा, सिलीगुड़ी: आज देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 138वीं जयंती है। उनका जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। देश रत्न राजेंद्र बाबू की जयंती को धूमधाम से मनाने के लिए उनके पैतृक आवास पर जोर-शोर से तैयारियां चल रही है। तीन दिसंबर शनिवार को शासनिक अधिकारी और कई बड़े नेता प्रतिमा पर माला चढ़ाने पहुंचेगे। राजेंद्र बाबू विद्वता, सादगी और ईमानदारी के मिशाल थे। उनके जन्म जयंती पर आज पूरा देश उनको नमन कर रहा है।
बचपन से ही होनहार थे राजेंद्र बाबू
कहते हैं ना होनहार बिरवान के होत चिकने पात। राजेंद्र प्रसाद इसके सबसे बेहतरीन उदाहरण थे। वह बचपन से ही होनहार रहे। पढ़ाई लिखाई में उम्दा होने की वजह से एक बार तो उनकी परीक्षा आंसर शीट को देखकर, एक बार तो एग्जामिनर ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘The Examinee is better than Examiner’। दरअसल, आंशर शीट में गलती तो दूर की बात ही। राजेंद्र बाबू की लिखावट को देखकर ही परीक्षक हैरान हो गये थे। क्लास में हमेशा टॉप करने वाले राजेंद्र बाबू की जीवनी में एक बार ऐसा भी आया कि वे लॉ की परीक्षा को केवल पास कर पाये थे। जानकार बताते हैं कि राजेंद्र बाबू परीक्षा में केवल पास होने को बेहद तकलीफ देने वाला बताया था। दरअसल, राजेंद्र बाबू के पारिवारिक परिस्थितियों के चलते पहली बार उनकी पढ़ाई पर असर पड़ा था। हालांकि बाद में राजेंद्र बाबू ने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल करने पर स्वर्ण पदक से नवाजा भी गया था।
फारसी से की पढ़ाई की शुरुआत
बता दें कि राजेंद्र बाबू की प्रारंभिक पढ़ाई बिहार के छपरा में हुई थी। उन्होंने पढ़ाई की शुरुआत फारसी से की थी। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह पटना और कोलकाता चले गए थे।18 साल की उम्र में राजेंद्र प्रसाद ने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद उन्हें विश्वविद्यालय की ओर से 30 रुपये की स्कॉलरशिप मिलती थी। यह रकम उस जमाने में बड़ी रकम मानी जाती थी। 1915 में राजेंद्र प्रसाद ने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की। साथ ही उन्होंने कानून में ही डॉक्टरेट भी किया था।
अंतरिम सरकार में बने थे खाद्य मंत्री
कानून की पढ़ाई करने के बाद राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार प्रदेश के एक बड़े नेता के रूप में उभरे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित राजेंद्र बाबू 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी शामिल हुए थे। इस दौरान उनको जेल की यात्रा और अंग्रेजों की यातनाएं भी सहनी पड़ी थी। राजेंद्र बाबू आजादी से पहले 2 दिसंबर 1946 को वे अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री बने। जबकि जब देश स्वाधिन हुआ तो राजेंद्र बाबू देश के पहले राष्ट्रपति बने। राजेंद्र प्रसाद देश के एकलौते राष्ट्रपति हैं जो लगातार दो बार राष्ट्पति चुने गए। वह 12 सालों तक राष्ट्रपति रहे।
75 साल बाद भी पैतृक आवास का नहीं हुआ विकास
राजेंद्र बाबू का पैतृक निवास सिवान जिला मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जीरादेई गांव में हैं। यह हैरत की बात ही है कि जिसे देश को एक महान स्वतंत्रता सेनानी और पहले राष्ट्रपति देने का गौरव प्राप्त है, वहां आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी विकास नहीं हो सका है। जीरादेई रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के बैठने के लिए बने दो चार बेंच और चबूतरों के अलावा कोई भी सुविधा नहीं है। ना तो यहां बड़ी गाड़ियों के ठहराव और ना शौचालय की सुविधा है। यहां पर प्लेटफार्म पर गड्ढे बने हुए हैं।
केवल जयंती पर याद किये जाते हैं राजेंद्र बाबू
राजेंद्र प्रसाद के गांव में उनकी धर्मपत्नी राजवंशी देवी के नाम पर एक राजकीय औषधालय की स्थापना की गई थी। जो आज खंडहर में तब्दील हो गया है। हालांकि देशरत्न की गरिमा और उनके धरोहर को बरक़रार रखने की नियत से केंद्र सरकार द्वारा जीरादेई स्थित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक मकान को पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया है। जिस कारण देशरत्न का पैतृक मकान उनकी स्मृति के रूप में बच गया है।
पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की गयी थी
चुनाव के दौरान राज्य सरकार ने भी राजेंद्र बाबू के पैतृक आवास को पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी, लेकिन इस दिशा में भी अब तक कोई काम शुरू नहीं किया गया है। बावजूद इसके रोजाना यहां सैकड़ों की तादाद में पर्यटक और दर्शक आते हैं। जिनकी ख्वाहिश है कि देशरत्न के मकान को सरकार कम से कम एक म्यूजियम या फिर लाइब्रेरी के रूप में बना दे। ताकि देशरत्न के बारे में लोग ज्यादा से ज्यादा जान पाएं। रिपोर्ट अशोक झा