Khabar Aajkal SiliguriKhabar Aajkal Siliguri
  • Local News
    • Siliguri
    • West Bengal
    • India
  • International
  • Horoscope
  • Sports
  • Contact Us
  • Privacy Policy
Facebook Twitter Instagram
Facebook Twitter Instagram
Khabar Aajkal SiliguriKhabar Aajkal Siliguri
  • Local News
    • Siliguri
    • West Bengal
    • India
  • International
  • Horoscope
  • Sports
  • Contact Us
  • Privacy Policy
Khabar Aajkal SiliguriKhabar Aajkal Siliguri
Home»India»केदारनाथ और दक्षिण भारत के रामेश्वरम में बहुत ही गहरा संबंध
India

केदारनाथ और दक्षिण भारत के रामेश्वरम में बहुत ही गहरा संबंध

Uma ShaBy Uma ShaFebruary 20, 2023
Facebook WhatsApp Twitter LinkedIn Email Telegram
Share
Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

 केदारनाथ और दक्षिण भारत के रामेश्वरम में बहुत ही गहरा संबंध
-पांच ऐसे शिव मंदिर भी हैं जो सृष्टि के पंच तत्व यानी जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती का प्रतिनिधित्व करते हैं
अशोक झा, सिलीगुड़ी:  कहते हैं किसी वह तो सृष्टि है इसके पीछे बहुत बड़ा कारण छुपा हुआ है। आइए इसके पीछे के रहस्य को आपको बताएं। मान्यताओं के अनुसार, उत्तराखंड के केदारनाथ और दक्षिण भारत के रामेश्वरम में बहुत ही गहरा संबंध है। ये दोनों ही मंदिर भगवान शिव के हैं। दोनों ही ज्योतिर्लिंग देशांतर रेखा यानी लॉन्गिट्यूड पर 79 डिग्री पर मौजूद हैं।
इन दो ज्योतिर्लिंगों के बीच पांच ऐसे शिव मंदिर भी हैं जो सृष्टि के पंच तत्व यानी जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कैेसे एक सूत्र में बंधे हैं सातों मंदिर?

उत्तराखंड का केदारनाथ, तमिलनाडु के अरुणाचलेश्वर, थिल्लई नटराज, जम्बूकेश्वर, एकाम्बेश्वरनाथ, आंध्रप्रदेश के श्रीकालाहस्ती शिव मंदिर अंततः रामेश्वरम् मंदिर को सीधी रेखा में स्थापित किया गया है। माना जाता है कि श्रीकालाहस्ती शिव मंदिर जल, एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर अग्नि, अरुणाचलेश्वर मंदिर वायु, जम्बूकेश्वर मंदिर पृथ्वी और थिल्लई नटराज मंदिर आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन सभी मंदिरों को 79 डिग्री लॉन्गिट्यूड की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है। इस रेखा को ‘शिव शक्ति अक्ष रेखा’ भी कहा जाता है। इन मंदिरों का करीब 4,000 वर्ष पूर्व निर्माण तब किया गया था, जबकि स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक ही उपलब्ध नहीं था. लेकिन ये सभी मंदिर यौगिक गणना के आधार पर बनाए गए हैं। इस रेखा के एक छोर पर उत्तर में केदारनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग है. यह रेखा उत्तर को दक्षिण से जोड़ती है. ऐसा माना जाता है कि जब भी इन मंदिरों की स्थापना की गई, उसमें अक्षांश और देशांतर का पूरा ध्यान रखा गया होगा।

भारत का ग्रीनविच है उज्जैन

इन सभी मंदिरों के बीच में भारत का खास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग जो उज्जैन में स्थापित है, वो मौजूद है. पश्चिमी देशों से पहले से उज्जैन में समय की गणना की अवधारणा हो चुकी थी. उज्जैन को भारत का सेंट्रल मेरिडियन माना जाता था। उज्जैन पृथ्वी आकाश की सापेक्षता में मध्य में माना जाता है। काल गणना के अनुसार शास्त्र में उज्जैन उपयोगी रहा है। भौगोलिक गणना के आधार पर प्राचीन विद्वानों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना है. साथ ही यह माना गया है कि कर्क रेखा भी यहीं से गुजरती है। ग्रीक गणितज्ञ क्लाडियस टॉलमी का भी मानना था कि उज्जैन भौगोलिक नजरिए से बेहद खास है। ग्रीक सभ्यता में उज्जैन को ओजीन नाम से जाना जाता था। उस समय विश्व के प्रसिद्ध शहरों में से एक था उज्जैन।

आइए जानते हैं कि ये सात मंदिर एक ही रेखा में कैसे बने हैं

 केदारनाथ धाम:  यह मंदिर 79.0669 डिग्री लॉन्गिट्यूड पर स्थित है. केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. इसे अर्द्धज्योतिर्लिंग कहते हैं. नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर यह पूर्ण होता है. कहा जाता है कि इस मंदिर को महाभारत काल में पांडवों ने बनवाया था और फिर आदिशंकराचार्य ने इसकी पुनर्स्थापना करवाई थी।

 श्रीकालाहस्ती मंदिर:  यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर में है. तिरुपति से 36 किमी दूर स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर को पंचतत्वों में जल का प्रतिनिधि माना जाता है. यह मंदिर 79.6983 डिग्री E लांगिट्यूड पर स्थित है।

एकम्बरेश्वर मंदिर: यह मंदिर 79.42’00’ E लांगिट्यूड पर स्थित है. यहां शिवजी को धरती तत्व के रूप में पूजा जाता है. इस विशाल शिव मंदिर को पल्लव राजाओं द्वारा बनवाया गया और बाद में चोल एवं विजयनगर के राजाओं ने इसमें सुधार किया. इस मंदिर में जल की अपेक्षा चमेली का सुगंधित तेल चढ़ाया जाता है।

अरुणाचलेश्वर मंदिर: यह मंदिर 79.0677 E डिग्री लांगिट्यूड पर स्थित है। इसे तमिल साम्राज्य के चोलवंशी राजाओं ने बनाया था। जम्बूकेश्वर मंदिर:  यह मंदिर करीब 1800 साल पुराना है. इसके गर्भगृह में एक जल की धारा हमेशा बहती रहती है। थिल्लई नटराज मंदिर: यह मंदिर 79.6935 E डिग्री लांगिट्यूड पर स्थित है. इसका निर्माण आकाश तत्व के लिए किया गया है. यह मंदिर महान नर्तक नटराज के रूप में भगवान शिव को समर्पित है. नृत्य की 108 मुद्राओं का सबसे प्राचीन चित्रण चिदंबरम् में ही पाया जाता है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग:माना जाता है कि लंका पर चढ़ाई से पहले श्रीराम ने रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। रिपोर्ट अशोक झा

Share. Facebook WhatsApp Twitter Pinterest LinkedIn Telegram Email

Related Posts

মহেশতলার নুঙ্গি বাজারের একটি বাজির গোডাউনে ভয়াবহ বিস্ফোরণ, মৃত ৩।।

March 21, 2023

भूतड़ी अमावस्या आज, यह तिथि पितरों को समर्पित है

March 21, 2023

युवाओं के आत्मघाती दस्तों को तैयार करने के लिए कर रहा था अमृतपाल सिंह

March 21, 2023
Advertisement
Facebook Twitter Instagram WhatsApp
  • Contact Us
  • Privacy Policy
© 2023 Khabar Aajkal Siliguri

Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.