कमल दल पर 51 इंच के विराजमान होगी रामलला की मूर्ति (पांच वर्ष की आयु वाली)
-रामलला के हाथ मे होंगे धनुष और तीर, जो राम का नहीं वह किसी काम का नहीं
अशोक झा, सिलीगुड़ी: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य लगातार चल रहा है। यहां सैकड़ों कारीगर और शिल्पकार दिन-रात मंदिर निर्माण के काम में जुटे हुए हैं। अयोध्या से रामलला का दर्शन कर लौटे सीताराम डालमिया के अनुसार श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों के मुताबिक जनवरी के तीसरे सप्ताह में बड़े आयोजन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गर्भगृह में रामलला की मूर्ति स्थापित करने की तैयारी है। इस ऐतिहासिक अवसर को लेकर विश्व भर के रामभक्तों में अपार उत्साह है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस मौके पर देशभर से हजारों साधु-संत और लाखों रामभक्त अयोध्या पहुंचेंगे और रामलला के दर्शन करेंगे। साथ ही भक्तों के अयोध्या पहुंचने का यह सिलसिला आगे अनवरत चलता रहेगा। ऐसे में उद्घाटन अवसर के साथ ही आगे व्यवस्था प्रबंधन पर मंथन तेज है। यह मंथन केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) व तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में प्रारंभिक स्तर पर शुरू हुई है। इसमें यह समझा जा रहा है कि किस तरह से उद्घाटन उत्सव के साथ ही आगे दर्शन के लिए आने वाले भक्तों के लिए उचित प्रबंधन किया जाए। ताकि बिना किसी अव्यवस्था के उन्हें अच्छे से प्रभु राम का दर्शन मिल जाए।इस बीच, खबर है कि भगवान श्री रामलला की मूर्ति चयन की प्रक्रिया पूरी हो गई है. महाराष्ट्र के शिल्पकार की ओर से बनाए गए रामलला के चित्र पर मुहर लगाई गई है. कमल दल पर 51 इंच के रामलला की मूर्ति (पांच वर्ष की आयु वाली) विराजमान होगी। रामलला के हाथ मे धनुष और तीर भी होंगे। जानकारी के मुताबिक, अप्रैल से मूर्ति के निर्माण काम शुरू हो जाएगा। बताया जा रहा है कि गर्भगृह को मकराना मार्बल से तैयार होगा। बीते शनिवार को रामसेवक पुरम में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और मूर्तिकारों की एक बैठक भी बुलाई गई थी। भगवान राम की मूर्ति निर्माण का निर्माण जाने-माने शिल्पकारों की देख-रेख में किया जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गर्भगृह में तीन मंजिलें होंगी, जहां हर मंजिल पर 8 दरवाजे बनाए जाएंगे। इनमें से 21 दरवाजे पूरी तरह तैयार हैं। वहीं 3 मुख्य दरवाजों का काम अभी प्रगति पर है. पिछले साल जुलाई में काम शुरू किया गया था। श्रद्धालुओं को उम्मीद है कि 2023 तक पूरा निर्माण हो जाएगा।बताया जा रहा है कि रामलला के सिंहासन का डिजाइन का काम अभी पूरा नहीं हुआ है. इस पर काम चल रहा है।
सिंहासन के निर्माण में मार्बल का इस्तेमाल होगा
जानकारी के मुताबिक, सिंहासन के निर्माण में बेहतरीन मार्बल पत्थर के इस्तेमाल किए जाएंगे। इसकी तलाश की जा रही है। ऐसी भी खबर है कि सिंहासन पर सोने-चांदी की भी परत को चढ़ाया जा सकता है। हालांकि, इसकी पुष्टि नहीं हुई है। वहीं रामलला के मंदिर को तीन फ्लोर में बनाया जाएगा। हर फ्लोर पर तीन तरह के दरवाजे बनाए जाएंगे। इसके बाद परिक्रमा वाले रास्ते में तीन छोटे-छोटे दरवाजे बनाए जाएंगे।
मंदिर के निर्माण में विशेष तरह की नक्काशी का काम हो रहा है। हाल ही में राम लला की मूर्ति के निर्माण के लिए नेपाल से शालिग्राम पत्थर मंगाए गए थे। इन पत्थरों को नेपाल की काली नदी से निकाला गया था। ये शिलाएं जिन रास्तों से गुजरीं, वहां भक्तों का सैलाब उमड़ा। बिहार और उत्तर प्रदेश में इन शिलाओं की भक्तों ने पूजा-अर्चना की थी।
अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण जोरों पर है। उम्मीद है कि अगले जनवरी में जब उसे श्रद्धालुओं के लिए खोला जायेगा, तो वहां भारी जनसमुद्र उमड़ेगा। इसके मद्देनजर धर्मनगरी को नया रूप-रंग देने के लिए उसकी सड़कों को चौड़ी करने की कवायदें चल ही रही हैं। साथ ही, आस्था के दूसरे केंद्रों को भी सजाया-संवारा जा रहा है। उद्देश्य यह है कि श्रद्धालु राममंदिर में दर्शन-पूजन के बाद अन्य आस्था-केंद्रों की ओर जायेंगे, तो व्यवस्था बनाये रखने में सहूलियत होगी। इस लिहाज से सबसे ज्यादा जोर गुप्तारघाट के सौंदर्यीकरण पर है। निर्माणाधीन राममंदिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरयू के इस घाट के बारे में मान्यता है कि भगवान राम ने अपनी लीला की समाप्ति के बाद वहीं से बैकुंठ धाम कहें, साकेत धाम, परम धाम या दिव्य धाम को प्रस्थान किया था। उसके बाद से ही इस घाट को गुप्तारघाट कहा जाने लगा। इससे पहले उसका नाम गो-प्रतारणघाट था यानी वह घाट, जहां से गायें सरयू पार करती थीं। मान्यता है कि भगवान राम स्वर्गारोहण के लिए इस घाट पर आये, तो उनके साथ अयोध्या के कीट-पतंगे तक उनके दिव्य धाम चले गये थे, जिससे अयोध्या उजड़-सी गयी थी। बाद में उनके पुत्र कुश ने नगर और घाट को फिर आबाद किया। हालांकि महाराज विक्रमादित्य को भी इसका श्रेय दिया जाता है। वर्तमान में इस घाट पर कई छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें राम-जानकी मंदिर, चरण पादुका मंदिर, नरसिंह मंदिर और हनुमान मंदिर प्रमुख हैं। जो हनुमान अयोध्या में राम के सेवक और भक्त हैं, वे इस मंदिर में राजा के रूप में विराजमान हैं. प्रायः सारी ऋतुओं में प्रकृति की अठखेलियां इस घाट व उसके मंदिरों के वातावरण को मोहक बनाती रहती हैं। उन्नीसवीं सदी तक यह घाट खासा जीर्ण-शीर्ण हो चला था, तो राजा दर्शन सिंह ने इसका नवनिर्माण करवाया था। बाद में उसके पास ही मिलिट्री मंदिर के निर्माण, कंपनी गार्डन व राजकीय उद्यान विकसित होने से इसका धर्मस्थल का स्वरूप पर्यटन स्थल में भी बदल गया। अब नवीनीकरण के प्रयासों के तहत इस घाट को अयोध्या के दूसरे वैभवशाली घाटों से जोड़ा जा रहा है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो श्रद्धालु, पर्यटक व तीर्थयात्री जल्दी ही गुप्तारघाट से नयाघाट तक लग्जरी क्रूज सेवा से सरयू की सैर भी कर सकेंगे। वाराणसी की तर्ज पर इस सैर में वे आठ किलोमीटर की दूरी डेढ़ घंटे में तय करेंगे।सरयू नदी पर गुप्तारघाट से नयाघाट तक नया तटबंध बनाकर उस पर छह मीटर चौड़ी सडक भी बनायी जा रही है। इस घाट की ही तरह महाराज दशरथ के अंतिम संस्कार स्थल का भी, जिसे दशरथ समाधि स्थल कहते हैं, सौंदर्यीकरण कर बड़े धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है और वहां तक पहुंच सुगम बनाने के लिए बड़ी सड़क बनायी जा रही है। इसकी व्यवस्था भी की जा रही है कि वहां पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों को उससे जुड़े अपने सभी सवालों के जवाब मिल सकें। अभी बहुत से श्रद्धालु पूछते हैं: महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार किस कारण अयोध्या में नहीं किया गया? वे इसको लेकर भी जिज्ञासु होते हैं कि जब उनके निधन के वक्त उनके बेटे अयोध्या में नहीं थे, तो उनका अंतिम संस्कार किसने किया। जानना दिलचस्प है कि उक्त अंतिम संस्कार स्थल पूराबाजार नामक ग्राम पंचायत के उत्तर बिल्वहरि घाट में स्थित है और ‘अयोध्या महात्म्य’ व ‘अयोध्या दर्पण’ के अनुसार अंतिम संस्कार स्थल के रूप में उसके चुनाव के पीछे भरत की यह इच्छा थी कि यह संस्कार अयोध्या के आग्नेय कोण पर सरयू के समीप स्थित ऐसी भूमि पर किया जाना चाहिए, जहां पहले किसी का अंतिम संस्कार न हुआ हो। यह तो सर्वविदित ही है कि कुलगुरु वशिष्ठ ने पुत्रों की अनुपस्थिति में स्वयं ही महाराज का अंतिम संस्कार कर देने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था और दूत भेजकर भरत व शत्रुघ्न को ननिहाल से अयोध्या बुलवाया था। मुखाग्नि भरत ने ही दी थी और वनवास की समाप्ति के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे, तो वे दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करने यहां आये थे। इस स्थल पर श्वेत संगमरमर से निर्मित समाधि और मंदिर स्थित हैं। अभी तक सरयू में जब भी बाढ़ आती, इनके वजूद के लिए संकट पैदा कर देती रही है। श्रद्धालुओं को यहां तक पहुंचने हेतु अयोध्या से तेरह-चौदह किलोमीटर की दूरी तय करने में भी नाना पापड़ बेलने पड़ते रहे हैं। लेकिन अब अयोध्या-बिल्वहरि घाट से होकर इस स्थल तक चौड़ी सड़क का निर्माण और समाधि परिसर का सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है। राममंदिर खोले जाने के बाद श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि के नये मूल्यांकन के बाद इसकी सड़क को समीपवर्ती राजमार्ग से भी जोड़ा जा रहा है। रिपोर्ट अशोक झा