आज देशभर में उत्तरायण का उत्सव मकर संक्रांति, पोंगल
-पवित्र गंगा नदी गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में सागर से मिलती है
अशोक झा, सिलीगुड़ी:
आज 15 जनवरी शुभ दिन रविवार और माघ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। आज देशभर में मकर संक्रांति, पोंगल, उत्तरायण का उत्सव मनाया जा रहा है।मध्य प्रदेश में जहां इसे संक्रांति कहा जाता है तो वहीं गुजरात (Gujrat) में इसे उत्तरायण और दक्षिण भारत में पोंगल कहा जाता है। इस दिन अलग अलग जगह यहां अलग-अलग पकवान भी बनते हैं। बिहार में इस दिन खिचड़ी बनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, इस साल सूर्य शनिवार, 14 जनवरी की रात में 08:21 मिनट पर पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। शास्त्रों में दान और स्नान का शुभ मुहूर्त उदया तिथि में माना जाता है। इसीलिए उदया तिथि के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व रविवार, 15 जनवरी को मनाया जाएगा। दान, पुण्य और स्नान का शुभ मुहूर्त भी 15 जनवरी के दिन ही होगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में नहाने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है। इसको लेकर पौराणिक कथी भी प्रचलित है, जिसे लेकर लोग गंगा स्नान के बाद दान-पुण्य करते है। मकर संक्रांति के दिन जमकर पतंगबाजी भी की जाती है. वहीं, इस दिन लोग घूमने फिरने भी निकलते हैं और अपनों के साथ समय बीताते हैं। भारत में सबसे पवित्र गंगा नदी गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में सागर से मिलती है। गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को गंगासागर के नाम से जाना जाता है। इस स्थान को सागरद्वीप के नाम से भी जाना जाता है। कुंभ मेले को छोडकर देश में आयोजित होने वाले तमाम मेलों में गंगासागर का मेला सबसे बड़ा होता है। हिंदू धर्मग्रंथों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है। मकर संक्रांति पर लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते है।
गंगासागर में मकर संक्रांति से पंद्रह दिन पहले मेला शुरू हो जाता है। लोग संगम में स्नान कर सूर्यदेव को अर्ध्य देते हैं। मेले की विशालता के कारण इसे लघु कुंभ मेला भी कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन यहां सूर्यपूजा के साथ विशेष तौर कपिल मुनि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। भगवान विष्णु जी के कहने पर कपिल मुनि के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। उन्होंने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान ली फलस्वरूप कपिल मुनि का जन्म हुआ। उन्हें विष्णु अवतार माना गया है।
आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ के अश्वों को छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा। अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ का अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिला।
फलतः सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज हो उन्हें अपशब्द कहने लगे। इससे शापित ऋषि ने नाराज हो कर उन्हें अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भगीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भगीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भगीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रांति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है।
हिंदू मान्यता के अनुसार साल की 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति का सबसे महत्व ज्यादा है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य मकर राशि में आता हैं और इसके साथ देवताओं का दिन शुरू हो जाता है। गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। समुद्र में पूजन एवं पिंडदान कर पितरों को जल अर्पित करते हैं। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। मान्यतानुसार जो युवतियां यहां पर स्नान करती हैं। उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को स्वेच्छित वधु प्राप्त होती है। मेले में आए लोग कपिल मुनि के आश्रम में उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मंदिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भगीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं।
पहले गंगासागर जाना हर किसी के लिये संभव नहीं था। तभी कहा जाता था कि सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। यह पुराने जमाने की बात है जब यहां सिर्फ जल मार्ग से ही पहुंचा जा सकता था। आधुनिक परिवहन साधनों से अब यहां आना सुगम हो गया है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर हैं। मान्यता है कि यहां मकर संक्रांति पर पुण्य स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। सुंदरवन निकट होने के कारण गंगासागर मेले को कई विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफान और ऊंची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं।
इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां दलदल, जलमार्ग तथा छोटी छोटी नदियां, नहरें भी है। बहुत पहले इस स्थान पर गंगा की धारा सागर में मिलती थी। किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की छोटी धारा सागर से मिलती है। मेले में स्नान मुहूर्त तीन दिनों का होता है। यहां अलग से गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है। मेले के लिए स्थान निश्चित है। कहा जाता है कि कपिल मुनि के प्राचीन मंदिर को सागर की लहरें बहा ले गई थीं। मंदिर की मूर्ति अब कोलकाता में रहती है। मेले से कुछ सप्ताह पूर्व यहां के पुरोहितों को पूजा-अर्चना के लिए मिलती है।
गंगासागर मेला में 5 दिन महत्वपूर्ण होते हैं। इनदिनों में तीर्थयात्री मुंडन, श्राद्ध, पिंडदान और पितरों को जल अर्पित करते हैं। कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर समुद्र में समा गया था। 1973 में यहा कपिल मुनि का नया मंदिर बना है। गंगासागर एक छोटा गंगा नदी का डेल्टा द्वीप है। इसका क्षेत्रफल 282 वर्ग किलोमीटर है। सागर द्वीप के एक ओर बंगाल की खाड़ी और दूसरी ओर बांग्लादेश है। इस सुंदर द्वीप के ज्यादातर क्षेत्र में घने जंगल हैं। कपिल मुनि के मंदिर, आश्रम के अलावा यहां महादेव मंदिर, शिव शक्ति-महानिर्वाण आश्रम, भारत सेवाश्रम संघ का मंदिर और धर्मशालायें भी हैं।
इस टापू पर बांग्ला भाषी आबादी रहती है। अब तो पूरे वर्ष लोगों का यहां आवागमन होता है। कोलकाता से यहां पहुंचने के लिए सड़क है। मात्र 5 किलोमीटर नाव का सफर करना पड़ता है। गंगासागर में मकर संक्रांति के दिन 14 और 15 जनवरी को मुख्य मेला लगता है। गंगासागर के कायापलट में जुटीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुरिगंगा में ब्रिज का निर्माण करवाने के लिए प्रयासरत हैं। इस ब्रिज के बनने से लोग सड़क मार्ग से कचुबेरिया तक आ सकेगें। जल मार्ग का झंझट खत्म हो जाएगा। गंगासागर मेला किसी भी तरह कुंभ मेले से कम नहीं है। इस कारण इस मेले को भी कुंभ मेले जैसा दर्जा मिलना चाहिये। यहां के विकास के लिए कुंभ मेले की तरह अलग से बजट उपलब्ध होना चाहिए।
जानें- कहां कहां कर सकते हैं गंगा स्नान
इस दिन लोग त्रिवेणी संगम में शाही स्नान कर सकते है. यह नदी सबसे पवित्र जगहों में शामिल है. यहां पर गंगा यमुना और सरस्वती तीनों नदियों का मिलन होता है यही कारण है कि इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है. मकर संक्रांति के दिन यहां पर शाही स्नान का आयोजन किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
गंगा सागर
मकर संक्रांति के मौके गंगा सागर में शाही स्नान करने के लिए भी लोगों की भारी भीड़ लगी रहती है. यहां गंगा नदी का सागर यानी समुद्र से मिलन होता है. पश्चिम बंगाल में स्थित यह जगह हिंदुओं का एक पवित्र स्थल है. इस जगह स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक गंगा सागर में डुबकी लगाने वाले व्यक्ति को 10 अश्वमेध यज्ञ कराने जितना पुण्य मिलता है. कहा जाता है कि यहां लगाई गई डुबकी एक हजार गाय दान करने के बराबर फल देती है.
काशी
काशी को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है. मकर संक्रांति के मौके पर यहां देश विदेश से आते हैं और शाही स्नान करते हैं. इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में खिचड़ी महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं.
हरिद्वार
धर्म नगरियों में से एक हरिद्वार भी आता है. इस त्यौहार के मौके पर गंगा नदी के किनारे कई घाट पर आस्था उमड़ती है लेकिन हर की पौड़ी पर स्नान का विशेष महत्व माना गया है. संक्रांति के मौके पर यहां मेले का आयोजन होता है और यह भी कहा जाता है कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
स्नान-दान का शुभ मुहूर्त
पुण्य काल – 15 जनवरी 2023 को सुबह 7 बजकर 17 मिनट से शाम 5 बजकर 55 मिनट तक
महा पुण्य काल – 15 जनवरी 2023: सुबह 7 बजकर 17 मिनट से सुबह 9 बजकर 04 मिनट तक
रिपोर्ट अशोक झा